परिचय
गोवर्धन पूजा, जिसे अन्नकूट पूजा (Annakut Puja) के नाम से भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जिसे बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। Govardhan Puja हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन अर्थात Diwali के दूसरे दिन की जाती है, जो आमतौर पर अक्टूबर या नवंबर महीने में आती है। इस दिन Lord Krishana और गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है। तथा इस दिन भगवान कृष्ण को भोग देने के लिए लोग 56 तरह के व्यंजन बनाते है। यह लेख Govardhan Puja की उत्पत्ति, अनुष्ठानों और सांस्कृतिक महत्व पर प्रकाश डालता है जो लाखों लोगों के दिलों में एक विशेष स्थान रखता है।
Govardhan Puja Ki Story
Govardhan Puja का इतिहास हिंदू पौराणिक कथाओं में गहराई से समाया हुआ है। भागवत पुराण के अनुसार, भगवान कृष्ण ने एक बार वृन्दावन के लोगों को बारिश और तूफान के देवता भगवान इंद्र के प्रकोप से बचाया था।
उत्तर प्रदेश के वृन्दावन में, भगवान कृष्ण जो चरवाहे और किसान थे, रहा करते थे और वहां के लोगो के बीच बहुत लोकप्रिय थे। वृन्दावन के लोग हर साल प्रसाद और तरह तरह के पकवान बना कर भगवान इंद्र की पूजा करते थे, वो यह विश्वास करते थे कि अच्छी फसल और पशुओ के खाने के लिए चारा उनके आशीर्वाद से आता है।
एक वर्ष, युवा कृष्ण ने इस परंपरा पर सवाल उठाते हुए इस बात पर जोर दिया कि उनकी समृद्धि सिर्फ बारिश से नहीं, बल्कि गायों और गोवर्धन पहाड़ी से आती है। उन्होंने लोगों को समझाया कि उन्हें भगवान इंद्र के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, जो उन्हें उनकी गायों के लिए हरा-भरा चारागाह, पानी और अन्य सभी आवश्यक चीजें प्रदान करता है।
ब्रज निवासी उनकी बात से सहमत हो गए और भगवान इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा की, उन्होंने गोवर्धन पहाड़ी की पूजा करने के लिए एक टीले के आकार में विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों और अन्य वस्तुओं का प्रसाद बनाया। खाद्य पदार्थों से बने इस प्रसाद को अन्नकूट कहा जाता है, जिसका अर्थ है “भोजन का पर्वत।”
इस के जवाब में, भगवान इंद्र ने क्रोध में ब्रज निवासियों को उनके अपमान के लिए दंडित करने के उद्देश्य से, वृन्दावन में भारी बारिश और तूफान शुरू कर दिया ।
जिससे पुरे गांव में मूसलाधार बारिश होने लगी, पूरा गांव, पशु-पक्षी और अन्य प्राणी पानी में डूबने लगे जिससे सब काफी परेशान हो गए। तब भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली से पूरी गोवर्धन पहाड़ी को उठा लिया, जिससे एक विशाल छतरी बन गई, जिसमें कृष्ण सहित नगरवासियों और पशु-पक्षी ने गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण ली। जिससे ग्रामीणों को पर्वत के नीचे आश्रय मिला और मूसलाधार बारिश से उनको राहत मिली। भगवान कृष्ण के इस असाधारण पराक्रम ने उनकी दिव्य शक्तियों और उनके भक्तों के प्रति उनके प्रेम को और बढ़ा दिया ।
इंद्र देव को यह देख कर और क्रोध आ गया उन्होंने बारिश तूफान और तेज कर दिया। बारिश लगातार सात दिन तक होती रही और भगवान कृष्ण सात दिनों तक पर्वत को अपनी उंगली पर उठाये रहे। इंद्र यह देख कर सोचने लगे कोई आम व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता जब उन्हें मालूम चला के कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार है तो उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने बारिश रोक दी। वर्षा रुकने के बाद कृष्ण ने पर्वत नीचे रख दिया, ऐसा माना जाता है कि तब से प्रति वर्ष गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है।
Govardhan Puja 2023 Date
गोवर्धन पूजा कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन मनाई जाती है, यह दिवाली के अगले दिन मनाया जाता है, जो इसे पांच दिवसीय दिवाली उत्सव का चौथा दिन बनाता है। गोवर्धन पूजा 2023 में, Tuesday 14 November को है।
अनुष्ठान और परंपराएँ
Annakut की तैयारी
गोवर्धन पूजा के अनुष्ठानों में से एक ‘अन्नम’ या ‘अन्नकूट’ की तैयारी है, जिसका अर्थ है भोजन का पहाड़। अन्नकूट तैयार करने की परंपरा प्रकृति द्वारा प्रदान किए गए भोजन और संसाधनों के लिए आभार व्यक्त करना है। भक्त भिन्न प्रकार के शाकाहारी व्यंजन, मिठाइयाँ और प्रसाद तैयार करते हैं और उन्हें गोवर्धन पहाड़ी के प्रतीक के रूप में व्यवस्थित करते हैं।
इन व्यंजन को बाद में समुदाय को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। अन्नकूट भारत की समृद्ध कृषि विरासत और पर्यावरण संरक्षण का प्रतिनिधित्व करता है।
गोवर्धन पर्वत की पूजा
गोबर की एक छोटी पहाड़ी की रचना की जाती है, जो गोवर्धन पर्वत की तरह प्रतीत हो, इसे फूलों और रंगो से सजाया जाता है और बड़ी भक्ति के साथ पूजा की जाती है। यह भगवान कृष्ण द्वारा अपने लोगों की रक्षा के लिए पहाड़ी को उठाने के कार्य को दर्शाता है। कई लोग इस दिन गाय के गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाकर उसकी पूजा करते है।
Govardhan Puja की सामग्री
भगवान को अर्पित की जाने वाली मिठाइयाँ, अगरबत्ती, फूल, ताजे फूलों से बनी माला, रोली, चावल और गाय का गोबर सभी गोवर्धन पूजा की सूची में शामिल हैं। छप्पन भोग, अलग-अलग खाद्य पदार्थों से मिलकर तैयार किया जाता है, और शहद, दही और चीनी का उपयोग करके पंचामृत बनाया जाता है।
प्रार्थना करना और परिक्रमा
भक्त भगवान कृष्ण की पूजा के लिए मंदिरों में जाते हैं और उनके दिव्य दर्शन के साथ- साथ प्रार्थना और भजन (भक्ति गीत) करते हैं। उत्तर प्रदेश, वृन्दावन में भक्त गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं जिसे ‘गोवर्धन परिक्रमा’ भी कहते है।
निष्कर्ष
Govardhan Puja एक जीवंत और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध त्योहार है जो हिंदू पौराणिक कथाओं और संस्कृति का सार समाहित करता है। गोवर्धन पर्वत की पूजा Govardhan Puja के रूप में की जाती है। जिससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य जीवन पर्यावरण पर निर्भर करता है और हमें सबका धन्यवाद देना चाहिए जैसे पशु -पक्षी, नदी – पर्वत और पेड़-पौधों आदि। यह आस्था की शक्ति, पर्यावरण की रक्षा के महत्व और भगवान कृष्ण और उनके भक्तों के बीच शाश्वत प्रेम की याद दिलाता है।
FAQ: Govardhan Puja पर पूछे जाने वाले कुछ सवाल
Q1. Govardhan Puja के पीछे का इतिहास क्या है?
A1. Govardhan Puja उस प्रसंग की याद दिलाती है जिसमें भगवान कृष्ण ने वृन्दावन के लोगों को इंद्र के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत उठाया था।
Q2. Govardhan Puja कब मनाई जाती है?
A2. Govardhan Puja हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष के पहले दिन मनाई जाती है, जो आमतौर पर अक्टूबर या नवंबर में आती है।
Q3. Govardhan Puja कैसे मनाते हैं?
A3. भोजन का पर्वत (अन्नम) तैयार करते हैं, भगवद गीता के श्लोकों का पाठ करते हैं, प्रार्थना करते हैं। गोवर्धन पहाड़ी की पूजा करते हैं, और कुछ क्षेत्रों में परिक्रमा करते हैं। कई लोग इस दिन गाय के गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाकर उसकी पूजा करते है।
Q4. Govardhan Puja क्या दर्शाती है?
A4. गोवर्धन पूजा अहंकार और अहं पर विश्वास, विनम्रता और कृतज्ञता की विजय का प्रतीक है। यह पर्यावरण की रक्षा के महत्व पर भी प्रकाश डालता है।
Q5. Govardhan Puja प्रमुखता से कहाँ मनाई जाती है?
A5. गोवर्धन पूजा उत्तर भारत में व्यापक रूप से मनाई जाती है, विशेषकर भगवान कृष्ण की जन्मस्थली वृन्दावन और मथुरा में।
Q6. गोवर्धन परिक्रमा कितने किलोमीटर की है?
A6. गोवर्धन परिक्रमा 21 किलोमीटर की है ।
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