परिचय
Milad-un-Nabi (मिलाद-उन-नबी), जिसे Eid-e-Milad, Mawlid (मौलिद) और Mawlid al-Nabi al-Sharif (मौलिद अल-नबी अल-शरीफ) के नाम से भी जाना जाता है, सम्मानित पैगंबर मुहम्मद (Prophet Muhammad) के जन्म के उत्सव का प्रतीक है। ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार Prophet Muhammad का जन्म वर्ष 570 ई. में सऊदी अरब में हुआ था।
मुस्लिम समुदाय के बीच, शिया विद्वान इस अवसर को इस्लामी कैलेंडर के तीसरे महीने के 12वें दिन मनाते हैं, जिसे Rabi- al-Awwal (रबी-अल-अव्वल) के नाम से जाना जाता है। इसके विपरीत, सुन्नी विद्वान उसी महीने के 17वें दिन Prophet Muhammad का जन्मदिन मनाते हैं।
Milad-un-Nabi का ऐतिहासिक महत्व
मूल रूप से, रबी अल-अव्वल (Rabi al-Awwal) के 12वें दिन को उस दिन के रूप में मनाया जाता था जब Prophet Muhammad का निधन हुआ था। 13वीं शताब्दी तक ऐसा नहीं हुआ था कि व्यापक मुस्लिम आबादी ने ईद-ए-मिलाद को उनके जन्मदिन के रूप में मनाना शुरू कर दिया था, यह परंपरा तब से चली आ रही है।
कई विद्वानों का मानना है कि Prophet Muhammad का जन्म और निधन दोनों इस्लामी कैलेंडर के एक ही दिन पर हुआ था। जबकि मुस्लिम समुदाय का एक हिस्सा अभी भी इस दिन को अशुभ मानता है। दुनिया भर में अनगिनत मुसलमान इसे बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाते हैं।
प्रारंभ में, Milad-un-Nabi कुछ चुनिंदा लोगों द्वारा निजी समारोहों में मनाया जाता था। इस अवसर को मनाने के लिए लोग “मौलिद हाउस (Mawlid House)” में एक साथ एकत्र होते थे। मौलिद (Mawlid) शब्द का मूल अर्थ अरबी में “जन्म” है। ‘मौलिद-उन-नबी’ (مَولِد النَّبِي) जिसका मतलब अरबी भाषा में Prophet Muhammad का जन्म दिन है।
समय के साथ, Mawlid House में लोगों की संख्या बढ़ती गई, जिससे Prophet Muhammad के जन्म का जश्न मुसलमानों के बीच एक भव्य और अधिक व्यापक रूप से मनाया जाने वाला त्योहार बन गया।
पूरे भारत में Milad-un-Nabi समारोह
Milad-un-Nabi या eid-e-Milad, इस्लामी पैगंबर मुहम्मद का जन्मदिन, मस्जिदों में आयोजित सामूहिक प्रार्थनाओं के माध्यम से मनाया जाता है, जहां एक उपदेशक Prophet Muhammad के जीवन और कार्यों के बारे में उपदेश देते है। मुस्लिम समुदाय परिवार पैगंबर मुहम्मद के नेक कार्यों पर विचार करते हुए सेवइयां (दूध में मीठी सेवइयां) बनाकर और बांटकर उत्सव में भाग लेते हैं।
सांस्कृतिक कार्यक्रम समारोह:
Asafi Mosque, लखनऊ, उत्तर प्रदेश: उत्तर प्रदेश में ईद Milad-un-Nabi बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। लोग मस्जिदों और घरों को रोशनी और बैनरों से सजाते तथा इबादत करते हैं।
Nakhoda Mosque, कोलकाता, पश्चिम बंगाल: पश्चिम बंगाल के उत्सव मस्जिदों और दरगाहो में विशेष इबादत और उपदेशों के साथ शुरू होते हैं। पैगंबर के जीवन और शिक्षाओं पर धार्मिक विद्वानों की व्याख्या सुनने के लिए श्रद्धालु बड़ी संख्या में इकट्ठा होते हैं।
Imarat Shariah Mosque, पटना, बिहार: भारत और इस्लामी दुनिया के कई अन्य क्षेत्रों की तरह, बिहार भी Milad-un-Nabi को गहन भक्ति के साथ मनाता है। यह उत्सव राज्य भर की मस्जिदों में विशेष इबादत और उपदेशों के साथ शुरू होता है। धार्मिक विद्वानों को सुनने के लिए श्रद्धालु बड़ी संख्या में एकत्र होते हैं जो शांति, करुणा और एकता के प्रतीक के रूप में पैगंबर मुहम्मद की भूमिका पर जोर देते हैं।
शिया और सुन्नी Milad-un-Nabi कैसे मनाते हैं?
सुन्नी और शिया दोनों मुसलमान उत्सव में भाग लेते हैं, हालांकि धार्मिक प्रथाओं और परंपराओं में अंतर के कारण उनके पालन में भिन्नता होती है।
सुन्नी:
नशीदों का पाठ: सुन्नी मुसलमान अक्सर धार्मिक कविताओं और नशीदों (इस्लामिक गीतों) का पाठ करके Milad-un-Nabi मनाते हैं जो Prophet Muhammad की प्रशंसा करते हैं।
मस्जिद की सजावट: मस्जिदों और घरों को रोशनी और हरे बैनरों या झंडों से सजाया जाता है, जो इस्लाम के रंग का प्रतीक हैं।
दान और दयालुता के कार्य: कई सुन्नी दान के कार्यों में शामिल होने, जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाने और सहायता करने के लिए आगे आते हैं।
इस्लामी व्याख्यान: Prophet Muhammad के जीवन और शिक्षाओं पर विशेष व्याख्यान और उपदेश मस्जिदों या सामुदायिक केंद्रों में आयोजित किए जाते हैं।
भोजन और मिठाइयाँ: परिवार और समुदाय अक्सर विशेष भोजन और मिठाइयाँ साझा करने के लिए एक साथ आते हैं, जो खुशी के अवसर का प्रतीक है।
शिया:
धार्मिक सभाएँ: शिया मुसलमान आम तौर पर Prophet Muhammad और उनके परिवार के जीवन और शिक्षाओं को याद करने के लिए मस्जिदों या निजी घरों में इकट्ठा होते हैं, जिन्हें अहले बैत के नाम से जाना जाता है।
स्तुति का पाठ: स्तुति (मर्सिया या नोहा के रूप में जाना जाता है) जो अहले बैत विशेष रूप से इमाम हुसैन की पीड़ा और शहादत को उजागर करती है, का पाठ किया जाता है।
मोमबत्ती जुलूस: कुछ शिया समुदायों में, मोमबत्ती जुलूस आयोजित किए जाते हैं, जिसमें प्रतिभागी मोमबत्तियाँ या मशालें लेकर चलते हैं।
दान और दयालुता के कार्य: सुन्नी मुसलमानों के समान, शिया मुसलमान भी इस अवसर पर दान और दयालुता के कार्यों में संलग्न होते हैं।
विशेष प्रार्थनाएँ: विशेष प्रार्थनाएँ, जिन्हें सलात अल-मावलिद के नाम से जाना जाता है, अक्सर पढ़ी जाती हैं।
निष्कर्ष
यह ध्यान देने योग्य है कि Milad-un-Nabi का पालन सुन्नी और शिया समुदायों के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों और संस्कृतियों में काफी भिन्न हो सकता है। कुछ मुसलमान Milad-un-Nabi को धार्मिक अवकाश के रूप में नहीं मानते हैं, क्योंकि उनका मानना है, कि Prophet Muhammad के जन्मदिन का कुरान या हदीस में स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है।